नोट लेकर संसद में वोट या स्पीच देने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पीएम मोदी ने किया स्वागत
रिश्वत लेकर वोट देने या सवाल पूछने के मामले पर सांसदों को मुकदमे से छूट नहीं
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वागत किया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार यानी 4 मार्च को अपने पुराने फैसले को पलटते हुए कहा कि रिश्वत लेकर सदन में वोट दिया या सवाल पूछा तो सांसदों या विधायकों को विशेषाधिकार के तहत मुकदमे से छूट नहीं मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की कॉन्स्टीट्यूशन बेंच ने 25 साल पुराना फैसला पलट दिया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस ए एस बोपन्ना, एम एम सुंदरेश, पी एस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, संजय कुमार और मनोज मिश्रा की कॉन्स्टीट्यूशन बेंच ने कहा- हम 1998 में दिए गए जस्टिस पीवी नरसिम्हा के उस फैसले से सहमत नहीं हैं, जिसमें सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने पर मुकदमे से छूट दी गई थी। 1998 में 5 जजों की कॉन्स्टीट्यूशन बेंच ने 3:2 के बहुमत से तय किया था कि ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले का स्वागत करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि इससे स्वच्छ राजनीति को बढ़ावा मिलेगा और लोगों का सिस्टम के प्रति भरोसा और गहरा होगा।
मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुख्य बिंदु
- अगर कोई घूस लेता है तो केस बन जाता है। यह मायने नहीं रखता है कि उसने बाद में वोट दिया या फिर स्पीच दी। आरोप तभी बन जाता है, जिस वक्त कोई सांसद घूस स्वीकार करता है।
- संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 सदन के अंदर बहस और विचार-विमर्श का माहौल बनाए रखने के लिए हैं। दोनों अनुच्छेद का मकसद तब बेमानी हो जाता है, जब कोई सदस्य घूस लेकर सदन में वोट देने या खास तरीके से बोलने के लिए प्रेरित होता है। अनुच्छेद 105 या 194 के तहत रिश्वतखोरी को छूट हासिल नहीं है।
- रिश्वत लेने वाला आपराधिक काम में शामिल होता है। ऐसा करना सदन में वोट देने या भाषण देने के लिए जरूरत की श्रेणी में नहीं आता है। सांसदों का भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को नष्ट कर देती है। हमारा मानना है कि संसदीय विशेषाधिकारों के तहत रिश्वतखोरी को संरक्षण हासिल नहीं है।