नई संसद को मोदी मल्टीप्लेक्स कहना चाहिए,जानिए आखिर क्यों जयराम रमेश ने ऐसा कहा
अगर शिल्पकार से संविधान मर सकता है तो पीएम मोदी इसमें सफल हो गए है
नई संसद भवन पर काम शुरू हो गया है। हाल ही में संसद का विशेष सत्र इस भवन में संपन्न हुआ है। लेकिन अब इसकी तुलना पुराने संसद भवन से होने लगी है। इसी कड़ी में कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने इसकी तुलना संसद की पुरानी इमारत से करते हुए कहा कि पुरानी इमारत ज्यादा बेहतर है। उन्होंने कहा कि नई संसद, जिसे बहुत जोर-शोर के साथ लॉन्च किया गया था, वह पीएम मोदी के उद्देश्यों को अच्छी तरह पूरा कर रही है। इसे मोदी मल्टिपलेक्स या मोदी मेरियट कहा जाना चाहिए।
जयराम रमेश ने कहा मोदी संविधान की हत्या करने में सफल
सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म X में जयराम रमेश ने लिखा कि नई संसद में कार्यवाही शुरू होने के चार दिन बाद ही संसद के दोनों सदनों और लॉबी तक को मैंने जो देखा उसे संवाद की मौत कह सकते हैं। अगर आर्किटेक्चर से संविधान मर सकता है तो पीएम मोदी संविधान को दोबारा लिखे बिना उसकी हत्या करने में सफल हुए हैं।
पुरानी इमारत का एक दिव्य आभामंडल था, जो नई संसद के इमारत में नहीं
जयराम रमेश ने लिखा कि नई बिल्डिंग में एक दूसरे को देखने के लिए बाइनोकुलर्स की जरूरत पड़ेगी क्योंकि हॉल छोटे नहीं हैं, वे उतने आरामदायक नहीं हैं। संसद की पुरानी इमारत का न सिर्फ एक दिव्य आभामंडल था, बल्कि वह बाचतीत को बढ़ावा देता था। सदनों, सेंट्रल हॉल और बरामदों के बीच चलना आसान था।
सांसदों के बीच आत्मीयता को कमजोर करती है नई इमारत
कांग्रेस सांसद ने ये भी लिखा कि सदन को सफलता से चलाने के लिए सांसदों के बीच जिस तरह की बॉन्डिंग होनी चाहिए, ये नई इमारत उस बॉन्डिंग को कमजोर करती है। दोनों सदनों के बीच तेज समन्वय बिठाना बहुत जटिल हो गया है। उन्होंने लिखा कि पुरानी इमारत में अगर आप खो जाएं तो रास्ता ढूंढना बहुत आसान था, क्योंकि इमारत गोल थी। नई इमारत में अगर आप भटक गए, तो भूल-भुलैया में गुम हो जाएंगे।
पुरानी इमारत में खुलापन था, नई इमारत में घुटन का अहसास होता है
कांग्रेस नेता ने सोशल मीडिया पर लिखा कि पुरानी इमारत आपको स्पेस और खुलापन देती थी, जबकि नई इमारत में घुटन का अहसास होता है। संसद में ऐसे ही बैठने का आनंद ही गायब हो गया है। नया संसद भवन तकलीफदेह और दुखदायी है। मुझे यकीन है कि अन्य राजनीतिक पार्टियों के मेरे साथी भी ऐसा महसूस करते होंगे।
सचिवालय के स्टाफ के लोगों के लिए सुविधाओं का ध्यान नहीं रखा गया
साथ ही उन्होंने लिखा कि मैंने सचिवालय में स्टाफ के लोगों से सुना है कि नई इमारत के डिजाइन में ऐसी कई सुविधाओं का ध्यान नहीं रखा गया है, जो उनके काम के लिए जरूरी हैं। जब आप उन लोगों की राय नहीं लेते हैं, जिन्हें इमारत का इस्तेमाल करना है तो ऐसा ही होता है। जयराम रमेश ने लिखा कि उम्मीद है जब 2024 में सत्ता परिवर्तन होगा तो संसद की नई इमारत को इस्तेमाल करने का बेहतर विकल्प मिल पाएगा।